a हिन्दी विभाग, महात्मा गांधी महाविद्यालय, दरभंगा,
Received: 24-07-2024, Revised: 03-08-2024, Accepted: 22-08-2024, Available online: 30-11-2024
साहित्य की शक्ति को लोग आज प्राय: भूल से गए हैं। इसके पीछे छिपी चेतना और चिंता का लोप तथा अकर्मण्यता का बोलबाला साफ दीखता है। संस्कृति के इतिहास पर जब हम नजर डालते हैं तो पता चलता है कि पूरी दुनिया में साहित्य की शक्ति ने किस तरह से मनुष्योचित समाज बनाने के लिए नेताओं और आम लोगों को प्रेरित किया है। आम लोग भी साहित्य से शक्ति और चेतना पाकर समाज निर्माताओं की भूमिका में उतर आए। भारतीय मनीषा से ही अगर हम सत्य की जाँच करे तो दण्डी ने अपने ‘काव्यादर्श’ में कहा है –
इदमंधतमः कृत्स्नं भुवनत्रयम् ।
यदि शब्दामय ज्योतिरा संसार न दीप्यते ॥
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, शिखा (2024). राम’ और ‘रावण’ द्वंद्व. International Journal of Basic & Applied Science Research (IJBASR), 11 (3), 26-27